नेशनल डेस्क, बेंगलुरु. कर्नाटक के ब्लड बैंक से भेजे गए ‘बॉम्बे ब्लड ग्रुप’ के दो यूनिट खून से म्यांमार में एक मरीज को नया जीवन मिला। यह रेयर कैटेगरी का ब्लड ग्रुप है। अस्पताल की मांग पर बेंगलुरु के द्रावणगेर ब्लड बैंक से 27 नवंबर को कोरियर के जरिए ब्लड मीलों दूर भेजा गया। जिसे म्यांमार के अस्पताल में हार्ट सर्जरी के दौरान एक मरीज को चढ़ाया गया। बॉम्बे ब्लड ओ पॉजिटिव कैटेगरी से जुड़ा ऐसा ग्रुप है, जो दुनिया में 2500 लोगों में से एक में ही पाया जाता है।
– मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बॉम्बे ब्लड के लिए यंगून जनरल हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने बेंगलुरु स्थित संकल्प इंडिया फाउंडेशन से संपर्क किया था। यह संस्था इस रेयर ग्रुप के डोनर्स की जानकारी रखती है। इसके संयोजक रजत अग्रवाल ने बताया कि हम भारत और बाकी देशों में बॉम्बे ब्लड ग्रुप के डोनर्स को ढूंढकर उनका रिकॉर्ड रखते हैं। म्यांमार में कोई डोनर मौजूद नहीं था। डोनर म्यांमार नहीं जा सकते थे और मरीज के परिजन भी भारत आने में असमर्थ थे। ऐसे में दो यूनिट ब्लड दो से आठ डिग्री तापमान में प्रिजर्व करके कोरियर से भेजा गया, जो तीन दिन में अस्पताल पहुंचा।
10 दिन में एक्सपायर होने वाला था ब्लड
अग्रवाल ने बताया कि म्यांमार से मांग आने पर संस्था ने द्रावणगेर के एसएस मेडिकल इंस्टीट्यूट के प्रिंसिपल और ब्लड बैंक की प्रभारी डॉ कविता जीयू से संपर्क साधा। फिर मुंबई के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनो-हीमेटोलॉजी से ब्लड यूनिट विदेश भेजने की इजाजत ली गई। इसके बाद 27 नवंबर को इन्हें इंटरनेशनल कोरियर से भेजा गया। डॉ कविता के मुताबिक, बॉम्बे ब्लड की ये यूनिट पिछले दिनों रक्तदान शिविर में मिली थीं, जो 10 दिन में एक्सपायर होने वाली थीं। इनके डोनर्स को भी मालूम नहीं है कि उनका ब्लड ग्रुप इतना रेयर है। हमने बाद में बुलाकर उनकी काउंसलिंग की।
क्या है बॉम्बे ब्लड ग्रुप?
यह ब्लड ग्रुप ओ पॉजिटिव कैटेगरी से जुड़ा है। पहली बार 1952 में इसे बॉम्बे में खोजा गया था। यहीं से इस ग्रुप को यह नाम मिला। भारत में 10 से 17 हजार लोगों में से किसी एक व्यक्ति का यह ब्लड ग्रुप होता है। बॉम्बे ब्लड में एंटीबॉडी एच मौजूद होती है। बाकी सभी ग्रुप- ए, बी, एबी और ओ में एंटीजन एच पाया जाता है।